'Puja' Flowers and other things used in 'puja' (Hindu Worship).: आक के फूल (अर्क पुष्प) - (हिंदी ब्लॉग)

आक के फूल (अर्क पुष्प) - (हिंदी ब्लॉग)

पूर्ण विकसित आक का फूल
           आक के फूल जिन्हें संस्कृत में अर्क पुष्प कहा जाता है, एक स्वयं उगने वाला पौधा है। अलग अलग क्षेत्रों में इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है। भारत के कुछ क्षेत्रों में इसे अकबन नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में इसे मदार अथवा मंदार पुष्प नाम से भी जाना जाता है। भगवान् शिव को ये पुष्प विशेष पसंद हैं।  शिवपञ्चाक्षरी स्तोत्र में ये पंक्तियाँ आती हैं। 
''मंदार पुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै मकाराय नमः शिवाय। ''
कुछ लोग मंदार पुष्प का अर्थ Tiger's Claw Flower (जिसे बांग्ला में मांदेर फूल के नाम से जाना जाता है) से लगाते हैं परन्तु यह बिलकुल ही अलग फूल है। अंगेज़ी में इसे क्राउन फ्लावर के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसके बीच में जो बनावट होती है वह सुन्दर मुकुट (क्राउन) के समान होती है। 
आक (अकबन) के फूलों के गुच्छे
              प्रायः ये फूल दो प्रकार के होते हैं - १. सफ़ेद -बैंगनी तथा २. सफ़ेद। पहली प्रकार का फूल आम तौर पर पाया जाता है, इसे "रक्तार्क" कहा जाता है। जबकि दूसरी प्रकार का फूल कम पाया जाता है, इसे "श्वेतार्क" कहा जाता है। 
अर्क पुष्प (आक के फूल) के परागण के
बाद अर्धचन्द्राकार फल लगते हैं।
            यह हर प्रकार का मौसम बर्दाश्त करने वाला पौधा होता है। चीन, पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया में यह पौधा बहुतायत से पाया जाता है। यह सूखे, पथरीले इलाके में भी उग जाता है। उत्तर भारत में यह एक आम पौधा है। मार्च के महीने से इनके पेड़ों पर फूल आने शुरू हो जाते हैं और मई जून में पूरे फूलने लगते हैं। काले बड़े भौंरे इन फूलों की ओर खूब आकर्षित होते हैं। सफ़ेद पर बैंगनी एवं हल्का गुलाबी रंग आक फूलों के गुच्छे को सुशोभित करते हैं। इनमें एक विशेष प्रकार की हल्की सुगन्ध भी होती है जिसे फूलदार पौधे की बगल से गुजरते हुए अनुभव किया जा सकता है।
भँवरोँ का यह प्रिय फूल है। आक के गुच्छे पर बैठा यह भँवरा देखा जा सकता है।
ये इनके परागण में सहायक होते हैं। 
          इसके बीज हवा से फैलते हैं। परागन के बाद फल विकसित होने लगते हैं। इसके फल मोटे अर्धचन्द्राकार रूप में होते हैं।  फल तैयार होने पर बाहरी आवरण सूखकर फट जाता है और सैकड़ों की संख्या में बीज हवा के संपर्क में आ जाते हैं। सभी बीज एक साथ नहीं निकलते बल्कि लगातार तीन चार करके बाहर आने लगते हैं। पूरे दिन में सभी बाहर आते हैं और दिन भर में हवा की दिशा कई बार बदलती है। इस प्रकार हवा की सवारी करते हुए ये चारों दिशा में फैल जाते हैं। बीज छोटे और चपटे होते हैं जिनसे असंख्य नर्म, हलके एवं सफ़ेद सीधे - सीधे धागे जैसे रेशे चारों तरफ फैले होते हैं। सेमल के उड़ते हुए रुई की तरह ही आक के बीज भी गोल रुई के अंदर हवा में तैरते हुए दूर दूर तक फैलते हैं। सड़क के किनारे, बागीचे में या कहीं पथरीली जगह में उग जाते हैं। 
आक के दो फल इस चित्र में हैं। नीचे पीला फल पूरी तरह
फट कर बीज बिखेर चुका है जबकि ऊपर के  बीज ने फट
कर हवा में नीचे की तरफ से बीज बिखेरना प्रारम्भ कर
दिया है। 
          इसके पत्ते छूने में मखमली होते हैं किन्तु हाथों में चिपकते भी हैं। पत्तों या फूलों को तोड़ने पर दूध जैसा गाढ़ा द्रव निकलता है जो चिपचिपा होता है। कहा जाता है कि यह दूध जैसा पदार्थ यदि आँख में चला जाय तो आदमी अँधा हो सकता है। अतः फूलों को तोड़ते समय सावधानी रखनी आवश्यक है। आक के पेड़ का आयुर्वेद में महत्व है। शरीर के दर्द वाली जगह में दिए जाने वाले पञ्च - पल्लव के सेंक में पांच प्रकार के वृक्षों के पत्ते उपयोग में लाये जाते हैं। इन पांच में से एक पेड़ आक का होता है।
तेज़ हवा में अकबन के बीज
सफ़ेद रुई के साथ फैल रहे हैं। 
               तंत्र - विद्या में भी इस पेड़ का महत्त्व है। इसके सफ़ेद प्रकार अर्थात श्वेतार्क की मांग ज्यादा है। कहा जाता है की इक्कीस वर्ष बाद इस पेड़ की जड़ गणपति के आकार में आ जाती है जिसे कुछ विशेष मन्त्र एवं प्रक्रिया द्वारा निकाला जाता है। इसका तंत्र - विद्या में उपयोग किया जाता है। इसके जड़ों के टुकड़े को ताबीज़ की तरह भी पहना जाता है। शनिवार को अकबन के फूलों की माला हनुमान जी को पहनाने से कई प्रकार की व्याधियाँ दूर होती है।                         
सफ़ेद एवं बैंगनी रंगों के मिश्रण से युक्त आक के सुन्दर पुष्प
भगवान शंकर को बहुत ही प्रिय हैं। 
             भगवान शिव को पसंद होने के कारण शिव-मंदिरों में यह पुष्प अवश्य ही चढ़या जाता है। पुरे खिले हुए अथवा इसकी कली की माला बनाकर शिवलिंग को पहनाया जाता है। प्रसाद के रूप में इस चढ़े हुए माला को पुजारी भक्तों के गले में डाल देते हैं। कई बार शिव - मंदिरों को इन मालाओं की लड़ियों से सजाया भी जाता है। 
            मंदार पुष्प (आक के फूल) क्यों पवित्र माने जाते हैं इसकी कथा आप मेरे ब्लॉग अध्यात्म के अंतर्गत पवित्र शमी एवं मंदार को वरदान की कथा में पढ़ सकते हैं जो अभी अंग्रेजी में वर्णित है।    
कई वर्षों के बाद आक (अकबन) के पेड़ लगभग 4 - 5 मीटर तक ऊँचे हो जाते हैं। 

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