'Puja' Flowers and other things used in 'puja' (Hindu Worship).: अड़हुल फूल, जावा-कुसुम (Hibiscus) - हिंदी ब्लॉग

अड़हुल फूल, जावा-कुसुम (Hibiscus) - हिंदी ब्लॉग

जवाकुसुम (जपाकुसुम)
एकहरी अड़हुल का फूल जो काली भगवती को प्रिय है। 
अड़हुल का फूल पूरी दुनिया में पाया जानेवाला और पसंद किए जानेवाला पुष्प है। यह बांग्ला और संस्कृत में जवा कुसुम के नाम से और विदेशों में हिबिसकस (Hibiscus) के नाम से प्रसिद्ध है। कई रंगों, प्रकार एवं साइज़ में पाए जाने इस फूल की तुलना गुलाब के फूल से ही की जा सकती है। जहाँ गुलाब के बारे में कहा जाता है की इसका पौधा कई सौ वर्ष पहले भारत में लाया गया वहीँ अड़हुल का फूल विशुद्ध देशी है। यह भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया में सदियों से उगता आया है। जहाँ अन्य धर्मों के लोग इसे ख़ूबसूरती के लिए पसंद करते हैं वहीँ हिन्दू धर्म में यह पूजा के फूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। भारत और एशिया के तथा विशेषकर बांग्ला संस्कृति का यह एक अभिन्न हिस्सा है। भारत के पूर्वी क्षेत्र जिसमें बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा तथा असम एवं पडोसी राज्य आते हैं, की क्षेत्र देवी माँ आदिशक्ति हैं। (वैसे तो शिव एवं शिव - परिवार पूरे भारत में पूजे जाते हैं किन्तु मान्यता है कि उत्तरी क्षेत्र की भगवान शिव, पूर्वी क्षेत्र की माँ पार्वती, पश्चिमी क्षेत्र की गणेश जी तथा दक्षिणी क्षेत्र  की कार्तिकेय जी जो मुरुगन स्वामी के नाम से दक्षिण में जाने जाते हैं, द्वारा देखभाल की जाती है।) माँ पार्वती जो आदिशक्ति हैं, के विभिन्न रूप यथा दुर्गा, काली, तारा, शीतला आदि पूर्वी क्षेत्र में पूजी जाती हैं। इनका प्रिय रंग लाल है। अतः इन्हें लाल वस्त्र, लाल चूड़ियाँ, लाल सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित किये जाते हैं। लाल पुष्प में भी लाल अड़हुल का पुष्प (जवाकुसुम) इन्हें विशेष प्रिय है। इस क्षेत्र के किसी भी प्रसिद्ध मंदिर यथा कालीघाट मंदिर, दक्षिणेश्वर काली मंदिर या माँ कामाख्या मंदिर में इस फूल का महत्त्व देखा जा सकता है। 
             
माँ भगवती के चरण जिनके ऊपर जवाकुसुम की
आकृति बनी हुई है। 
            रामपुरहाट, पo बंगाल स्थित माँ तारा के प्रसिद्ध मंदिर में माता की मूर्ति के अतिरिक्त उनके पीतल निर्मित चरण की भी पूजा की जाती है। माँ की मूर्ति हमेशा दर्शन के लिए उपलब्ध नहीं होती, तब उनके इन्हीं चरणों की पूजा की जाती है। इन चरणों के ऊपरी हिस्से में जवाकुसुम के पुष्प की ही आकृति बनी होती है। आप चाहे दुमका, झारखण्ड के पुरातन मंदिरों के गांव मलूटी जाएँ (यह बंगाल से सटा इलाका है, जहाँ माँ मौलिक्षा का मुख्य मंदिर है।) अथवा बंगाल के उपरोक्त मंदिरों में, मंदिरों के पास धार्मिक वस्तुओं की दुकानों में ऐसे माँ - चरण विभिन्न साइजों में पीतल अथवा मिट्टी निर्मित बिकती हुई मिलेंगी। एक ऐसे ही माँ -चरण का चित्र यहाँ दे रहा हूँ। 
             अनेक प्रकार के अड़हुल पुष्पों में एकहरी, गुच्छेदार तथा मिर्ची - अड़हुल विशेष लोकप्रिय हैं। एकहरी प्रकार में एक ही परत में मात्र पांच रंगीन फूल की पत्तियाँ होती हैं तथा बीच में लम्बा परागण वाला हिस्सा होता है। इनका प्रचलित रंग लाल, सफ़ेद तथा हल्का बादामी होता है। लाल एकहरी पुष्प विशेष महत्त्व का है जो माँ भगवती को विशेष रूप से प्रिय है। माँ काली और तारा को इन पुष्पों की माला भी पहनाई जाती है। यह लाल फूल सौभाग्य का प्रतीक है तथा शुभ माना जाता है। बंगाल के गावों में प्रत्येक हिन्दू परिवार के घरों के आगे कम से कम एक लाल अड़हुल का पौधा अवश्य होता है जिस पर भरे हुए फूल बड़े मनमोहक लगते हैं। बांग्ला संस्कृति में कई पुरातन मंदिरों में जवाकुसुम का फूल पत्थरों पर भी उकेरा हुआ मिलता है जिससे पता चलता है कि यह यहाँ की संस्कृति में रचा - बसा है। 
          गुच्छेदार अड़हुल में एक ही आधार से कई सरे फूल जुड़े होते हैं जिससे ये भरे और बड़े लगते हैं। लाल रंग के ये फूल गुलाब को भी सुंदरता में मात करते हैं। 
मिर्ची अड़हुल, गमला में
            इसका एक और प्रकार जिसे मिर्ची - अड़हुल के नाम से भी जाना जाता है अत्यधिक पुष्पित होने के कारण लोकप्रिय है। यह पूरी तरह खिलता नहीं है बल्कि बंद ही रहता है। हरी डंठल और लाल मिर्च के सामान फूल होने के कारण यह मिर्ची - अड़हुल के नाम से प्रसिद्ध है। 
           देवियों के अतिरिक्त लाल अड़हुल गणेश और सूर्य देवता को भी चढ़ाया जाता है। सफ़ेद प्रकार का फूल महादेव को भी अर्पित किया जाता है। 
           अड़हुल का पौधा एक झाड़ीदार पौधा होता है जिसे अंग्रेजी में 'श्रब' के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इसका पौधा पुराना हो जाने पर तना एक फुट तक मोटा हो सकता है। इसमें फल या बीज नहीं होते परन्तु यह कटिंग द्वारा आसानी से लग जाता है। बरसात के मौसम में पेन्सिल जितनी मोटाई और लम्बाई का कटिंग जमीन में कुछ इंच गाड़ देने पर एक डेढ़ माह में इस पर पत्तियाँ आने लगती हैं। आसानी से लगने के कारण और झाड़ीदार होने के कारण कुछ लोग इसे घर के प्लॉट के किनारे - किनारे "हेज़" के रूप में भी लगाते हैं। 
             कम जगह होने पर इसे गमले में भी आसानी से लगाया जा सकता है। इसके फूल एक दिन खिलने के बाद अगले दिन मुरझाकर गिर जाते हैं। वनस्पति - विज्ञान के प्रारंभिक शिक्षा में इस फूल का उदाहरण दिया जाता है, क्योंकि इसके सभी अंग स्पष्ट रूप से विकसित एवं दृष्टिगोचर होते हैं। लिटमस टेस्ट की तरह इस फूल से भी टेस्ट किया जा सकता है। इसके लाल फूल को सफ़ेद कागज़ पर रगड़ने पर दाग लाल नहीं बल्कि नीला होता है। लिटमस पत्र की तरह इसपर यदि अम्लीय रस, यथा नीम्बू का रस डाला जाये तो इस दाग का रंग बदलकर लाल हो जाता है। 
छत की फुलवारी में पुष्पित अड़हुल फूल का झाड़
        इस फूल के औषधीय गुण भी होते हैं। जवाकुसुम जिसे जपाकुसुम भी बोला जाता है, का तेल अथवा लोशन केशों के लिए भी लाभदायी होता है। पुरातन समय से इसका तेल लम्बे और चमकदार बालों के लिए उपयोग में लाया जाता है। ऑनलाइन साइटों यथा अमेज़ॉन पर भी ये उपलब्ध हैं। इसका लिंक नीचे दिया जा रहा है:-

Bangota Hibiscus Oil - Pure & Natural Carrier Oil (15 ml)


             बालों में इसका पाउडर हिना की तरह ही अकेले या हिना में मिलाकर किया जा सकता है। यह कंडीशनर और हल्का क्लीन्ज़र का कार्य करता है। अब तो बाजार में इसका शैम्पू भी उपलब्ध है। अमेज़ॉन पर इसका लिंक नीचे है:-
पाउडर 

समीरा हिबिसकस पाउडर - Sameera Hibiscus Powder

शैम्पू   

Little Bee Single Hibiscus Shampoo, 100ml

मिर्ची अड़हुल की एक झाड़ी 
            फूल को सुखाकर इसका पाउडर चाय की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है। इस चाय से उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद मिलती है क्योंकि इसका प्रभाव डाइयूरेटिक्स की तरह होता है। कुछ समाज में इस चाय को पीने का रिवाज़ ही है। ऑनलाइन साइट अमेज़ॉन पर Hibiscus और Mixed चाय, Teabags उपलब्ध है। लिंक नीचे है। 

The Indian Chai - Organic Hibiscus Flower Tea 

Tea Treasure | Tropical Hibiscus - 100 gm

Ausum Tea Pure Seduction


           पुराने और प्रसिद्ध, निरंतर पूजित शिवमंदिर में लाल एकहरी पुष्प को शिव एवं पार्वती को अर्पित करने के उपरान्त प्रतिदिन इसे श्रद्धा भाव से प्रसाद रूप में कुछ मास तक खाने से निःसंतान स्त्री को संतान की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है।                    
           भारत में ही नहीं एशिया के कई देशों में जवाकुसुम उनकी संस्कृति का हिस्सा हैं। दक्षिण कोरिया और मलेशिया में यह राष्ट्रीय पुष्प है। दोनों देशों में अपनाये गए ये पुष्प अलग - अलग प्रकार के हैं।  

              

No comments:

Post a Comment