हिन्दू धर्म में तुलसी एक बहुत ही पवित्र पौधा है और विशेष कर इसके वैष्णव सम्प्रदाय में तो इसके बिना किसी पूजा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भगवान् विष्णु को यह अत्यंत प्रिय है और बिना तुलसी दल के वे पूजा में अर्पित किये गए किसी भोग को ग्रहण नहीं करते। भगवान सत्यनारायण की पूजा में (जो श्री विष्णु की ही पूजा है और प्रायः प्रत्येक हिन्दू परिवार में बराबर आयोजित की जाती है) आपने देखा होगा कि कम से कम एक तुलसी दल प्रत्येक प्रसाद की सामग्री पर डाली जाती है।
तुलसी का एक नाम वृंदा भी है। विष्णु के द्वापर में अवतार श्रीकृष्ण का बचपन वृन्दावन में बीता था। वृन्दावन का शाब्दिक अर्थ होता है - तुलसी का वन। जिस प्रकार शिव पूजन में बिल्वपत्र का महत्व होता है उसी प्रकार विष्णु पूजन में तुलसी दल अर्थात तुलसी पत्र का महत्व होता है।
प्रत्येक हिन्दू परिवार के निवास स्थान में तुलसी का पवित्र पौधा अवश्य होता है। प्रतिदिन स्नान के बाद भक्त तुलसी के पौधे में जल अवश्य डालते हैं और दीप दिखते हैं। शाम के समय भी जब घर की स्त्रियाँ संध्या पूजन करती हैं तो तुलसी को दीप दिखा कर इसके नीचे रखते हैं। गाँव में जहाँ निवास स्थान बड़े क्षेत्रफल में होता है वहाँ घर के बीच में एक आँगन होता है। आँगन में तुलसी पौधे के लिए विशेष स्थान होता है जिसे तुलसी चौरा या विष्णु चौरा कहा जाता है। यह दो से तीन फ़ीट ऊँचा स्तम्भ होता है जिस पर एक गमला बना होता है। इसे तुलसी पिण्डा भी बोला जाता है। इसे हमेशा साफ़ सुथरा और सजाकर रखा जाता है। शहरों में जहाँ जगह की कमी होती है वहाँ भी हिन्दू कम से कम एक गमले में तुलसी पौधे को अवश्य रखते हैं। तुलसी पौधे को छाया में नहीं रखा जाता। नीचे गिरे इसके पत्तों को पैर न लगे इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। ऐसे पत्तों को हाथ से चुन कर गमले में रखा जाता है। वृंदा को श्रीविष्णु द्वारा दिए गए एक वरदान (इसके पीछे भी एक कथा है) के कारण उनका स्थान हमेशा तुलसी पौधे के नीचे होता है। इसीलिए तुलसी के नीचे शालिग्राम रखा जाता है। शालिग्राम एक छोटा गोल पत्थर होता है, जो नारायणी नदी जिसे काली गण्डकी नदी भी कहा जाता है, से लाया जाता है। यह नदी नेपाल और उत्तर बिहार में बहती है। शालिग्राम को श्रीविष्णु का ही रूप माना जाता है। सत्यनारायण पूजा में ऐसे ही शालिग्राम को पंचामृत स्नान कराते आपने देखा होगा।
तुलसी का छोटा पौधा |
तुलसी के पौधे को अंग्रेजी में Holy Basil (होली बेसिल) कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Ocimum Tenuiflorum (ओसिमम टेनुइफ़्लोरम) है। सामान्यतः तुलसी दो प्रकार की पायी जाती है :--
१. हरे पत्तों वाली - इन्हें श्रीतुलसी, लक्ष्मी तुलसी या राम तुलसी कहते हैं।
२. बैंगनी पत्तों वाली - इन्हें श्याम तुलसी या कृष्णा तुलसी कहते हैं।
तुलसी के फूल लम्बी डंडी में छोटे-छोटे फूल के गुच्छों के रूप में होते हैं। इन्हें मंजर कहा जाता है जैसे आम के फूल को कहते हैं। तुलसी मंजरी को शिव और रुद्रावतार हनुमान को अर्पित किया जाता है। जहाँ तुलसी दल विष्णु को अत्यंत प्रिय है, वहीं देवियों (भगवती) को यह अर्पित नहीं किया जाता है।
तुलसी एक सुगन्धित छोटा पौधा (Herb -हर्ब) है जिनके ऊपर दोनों प्रकार के अलावा भी अन्य कई प्रकार होते हैं और जिन्हें इतना पवित्र नहीं माना जाता है। कुछ प्रकार के तुलसी दल के पत्तों को विदेशों में व्यंजनों में मसाले की तरह उपयोग किया जाता है। सामान्य पवित्र तुलसी के पौधे समशीतोष्ण वातावरण में अच्छी प्रकार उगते हैं, किन्तु ये बहुत ठण्ड नहीं बर्दाश्त कर सकते। कुछ अन्य प्रकार की तुलसी बहुत ही ठण्ड में ही उगती हैं। ऐसी ही एक प्रकार की तुलसी बद्रीनाथधाम, जो कि हिमालय में स्थित है और हिन्दुओं के चार सबसे पवित्र धामों में से एक है, में उगती है। यह झाड़ियों की तरह मंदिर के आसपास पहाड़ियों में उगती हैं। जाड़े के दिनों में ये वर्फ से ढँक जाती हैं। भगवान् बद्रीनाथ को यही तुलसी गुच्छों और माला के रूप में अर्पित की जाती है। अतः यह तुलसी भी पवित्र है।
तुलसी |
तुलसी की लकड़ी से मोतियों जैसे बीड्स भी बनाये जाते हैं जिनसे बनी माला को जपमाला (Rosary) की तरह उपयोग किया है या वैष्णव इसे गले में पहनते हैं। जप से सम्बंधित जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग "जप कैसे करें?" पर जा सकते हैं। तुलसी माला अमेज़ॉन के इस लिंक पर उपलब्ध है। तुलसी दल को तोड़ने के भी कुछ नियम होते हैं। तोड़ने से पहले प्रणाम किया जाता है और पत्ते तोड़ने के लिए क्षमा भी मांगी जाती है। रविवार को तुलसी दल तोड़ने का नियम नहीं है।
हिन्दू कैलेंडर के प्रत्येक पक्ष के एकादशी और चतुर्दशी का दिन श्रीविष्णु के लिए विशेष है। अतः इन दिनों में तुलसी पौधे की पूजा की जाती है। हिन्दू पञ्चाङ्ग के कार्तिक माह में प्रबोधिनी एकादशी के पास तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है जिसमे तुलसी का श्रीविष्णु से विवाह कराने की परम्परा है। इस पर्व के बाद ही हिन्दुओं में विवाह का "लगन" प्रारम्भ होता है जो इससे पहले मानसून की लम्बी अवधि में बंद रहता है। लगन वे शुभ तिथियाँ होती हैं जिनमें विवाह शुभ माना जाता है।
अधिकांश हिन्दू भक्तों की ईश्वर से यह अभिलाषा होती है कि उन्हें मोक्ष मिले। अर्थात जन्म मरण के चक्र से मुक्ति, पर यह आसान नहीं है। इसके लिए वे विभिन्न देवी देवताओं की अनेक प्रकार से पूजा करते हैं। पापकर्म का एक छोटा सा भी अंश उनकी मुक्ति की अभिलाषा में बाधा हो सकती है। किन्तु ऐसी मान्यता है कि मृत्यु शय्या पर पड़े व्यक्ति के मुँह में ताम्र पात्र से तुलसी और गंगाजल डालने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
तुलसी में कई औषधीय गुण भी होते हैं। आयुर्वेद में तुलसी एक महत्वपूर्ण पौधा है। घरेलु चिकित्सा में तुलसी की चाय सर्दी और खाँसी में प्रयुक्त होती है। लगातार खाँसी में ताज़ी तुलसी की पत्तियों के साथ काली मिर्च के कुछ दानों को चबाया जाता है। हरी तुलसी की पत्तियों की चाय जिसे काढ़ा भी कहा जाता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है। इस कारण कई बड़ी कम्पनियाँ बाज़ार में तुलसी चाय भी लेकर आ गयी हैं। तुलसी चाय की कई वैरायटी Amazon की साइट पर मौजूद है। तुलसी से सम्बंधित कई अन्य उत्पाद भी बाजार में उपलब्ध है।
मान्यता है कि तुलसी के पौधे के प्रत्येक भाग में देवताओं का निवास होता है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का निवास तुलसी की टहनियों में होता है, जड़ में सभी तीर्थ होते हैं। मध्य भाग में सभी देवताओं का निवास होता है जबकि शीर्ष पर सभी वेदों का निवास माना जाता है। तुलसी नमस्कार के मन्त्र में ये सभी तथ्य निहित हैं। अतः समृद्धि और मुक्ति के लिए घर के पास तुलसी का पौधा लगाएँ और प्रतिदिन जल अर्पित करने के समय निम्नलिखित तुलसी नमस्कार का मन्त्र पढ़ें:--
No comments:
Post a Comment