लोकप्रिय और सर्वसुलभ सफ़ेद फूल -तगर (English version)
तगर का सफ़ेद फूल |
यह एक छोटा दूधिया सफेद फूल होता है जिसमें पांच पंखुडियाँ होती हैं | फूल के नीचे की डंडी हल्की हरे रंग की होती हैं | बहुतायत में मिलने वाला यह फूल हिन्दू पूजा में बहुत उपयोग होता है क्योंकि सफेद रंग के फूल प्रायः सभी देवताओं को चढ़ाया जाता है | फिर भी महादेव को विशेष रूप से यह फूल समर्पित किया जाता है | यह सम्भवतः उनसे कुछ गुण मिलने के कारण हो सकता है, जैसे महादेव और इस फूल दोनों का रंग श्वेत है और उनके पांच मुख एवं इसकी पाँच पंखुडियां | इस फूल की श्वेत पंखुडियां सीधी नहीं होती बल्कि बाहर की तरफ हल्की मुड़ी होती है | इसका शेप कुछ - कुछ बच्चों के एक खिलौने - फिरकी - जैसा होता है जो हवा की गति में तेजी से घूमती है | इसीलिए कहीं - कहीं इसे फिरकी-फूल (Pinwheel Flower) भी बोला जाता है |
वनस्पति विज्ञान के अनुसार तगर का पेड़ श्रब (Shrub) की श्रेणी में आता है जिसका अर्थ है झाड़ीनुमा पौधा | यह चार-पाँच मीटर तक ऊँचा पेड़ होता है जिसकी हरी छतरी काफी घनी और फैली होती है | बरसात में इसपर बहुत सारे सफेद फूल हरी छतरी पर समरूप से खिलते हैं जो बहुत ही सुन्दर और लुभावने लगते हैं | इस समय इसके फूल थोड़े स्वस्थ भी होते हैं | चूँकि लोग इसके फूल पूजा के लिए तोड़ लेते हैं तो प्रायः पेड़ पर पुष्पों की सुन्दरता उपरी हिस्से में ही देखी जा सकती है जहाँ तक आदमी के हाथ पहुँचते हैं उससे उपर |
तगर का एक पेड़ जिसपर भरपूर कलियाँ हैं पर फूल कम | अधिकांश फूल भक्तों या मालाकारों द्वारा तोड़े जा चुके हैं | |
कुछ लोग इसे हेज (परिसर के किनारे झाड़ियों जैसे) की तरह लगाते हैं | सीमा से बाहर निकले हुए टहनियों पर फूलने वाले फूलों को बाहर से कुछ उनलोगों द्वारा तोड़ते हुए देख सकते हैं जो सुबह - सुबह मॉर्निंग वाक पर निकलते हैं या जो फूल बेचने का काम करते हैं | यहाँ तक कि यदि गृह - स्वामी जगे नहीं हों तो ये लोग जहाँ तक हाथ अन्दर पहुंचे वहाँ तक और यदि गेट खुल जाये तो अंदर के फूल भी तोड़ सकते हैं | मुझे याद है कि पटना के पुराने मोहल्ले गर्दनीबाग के सरकारी आवासों में बुने तारों की बाड़ (woven wire fencing) थी जिसके साथ तगर के पौधों को हेज (hedge) की तरह लगाया हुआ था | कुछ ही आवासों में रहने वाले उनकी बराबर छटाई करते थे, शेष में ये बड़े हो जाते थे जिनपर प्रतिदिन फूल आते | फूल बेचने वाले और मालाकार सुबह चार बजे से ही इन फूलों को तोड़ने के काम में लग जाते थे और अच्छा खासा फूल इकट्ठा कर लेते थे |
इसकी लोकप्रियता का एक अन्य कारण यह भी है कि यह सालों भर फूलता है | गर्मियों में जब पानी की कमी होती है तो आप पाएंगे कि फूलने वाले फूलों की संख्या कम हो गयी है और आकार भी कुछ छोटा हो गया है | जबकि बरसात में फूल स्वस्थ, कुछ बड़े और ज्यादा होते हैं |
हिन्दू पूजा में सफेद फूल शिव, सरस्वती, गणेश और विष्णु को समर्पित किये जाते हैं | हनुमान मंदिर में भी इस को समर्पित करते देख सकते हैं क्योंकि हनुमान जी को शिव का ही रुद्रावतार कहा जाता है |
पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर के बाहर तगर फूलों की माला बेचते हुए आप देख सकते हैं जिन्हें महावीर जी पर चढ़ाया जाता है | ये माला बेचने वाले आपको इन्हें खरीदने का बहुत आग्रह करेंगे |
तगर के पेड़ में परागन नहीं होते और न फल लगते हैं | खिलने वाले फूल भी 36 घन्टे के अंदर पेड़ से झड़कर गिर जाते हैं | मालाकार इस फूल की कलियों के भी माला बनाते है जो देखने में सुन्दर लगते हैं | यद्यपि हिन्दू पूजा में उपयोग होने वाले अधिकांश फूलों में हल्का या तेज सुगंध होता है परन्तु इसमें सुगंध नहीं होता |
तगर के दोहरे फूल |
तगर की एक अन्य प्रजाति भी होती जिसमें पंखुड़ियों की दोहरी तह होती है | ये फूल भी बड़े होते हैं और पंखुड़ियों का आकार भी अलग होते हैं | परन्तु संख्या में ये साधारण तगर से कम खिलते हैं | इसके पेड़ की पत्तियाँ थोड़ी चौड़ी और गहरी हरी होती हैं | पर इनके फूलों में एक हल्का सुगंध होता है |
तगर को तग्गर, फिरकी-फूल, चाँदनी, दूधफूल और क्रेप जैस्मिन (Crape Jasmine) के नाम से भी जाना जाता है | यह भारत का मूल पौधा है और यहाँ यह बहुतायत में पाया जाता है | लगभग सभी मंदिरों के परिसर में इसके पेड़ अवश्य पायेंगे |
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