'Puja' Flowers and other things used in 'puja' (Hindu Worship).: कनेर के फूल (हिंदी ब्लॉग)

कनेर के फूल (हिंदी ब्लॉग)

कनेर के खूबसूरत फूल:-        Read this blog in English
पीले कनेर का पेड़


          पूजा के फूलों में कनेर एक खूबसूरत पुष्प है। भारत में यह हर जगह पाया जाता है। कनेर एक उष्णकटिबंधीय पौधा है जिसे वनस्पति विज्ञान में "श्रब" अर्थात झाड़ीदार पौधा (Shrub) की श्रेणी में रखा गया है। इसे लगाना आसान है है और एकबार लग जाने पर इसे बहुत ही कम देखभाल की आवश्यकता होती है। यह पौधा सूखे क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है। सुन्दर और बहुतायत में फूलने के कारण इसे लैंडस्केप की सजावट में लगाया जा सकता है। कुछ लोग इसे बाड़े के किनारे "हेज" की तरह भी लगाते हैं जहाँ इसकी नियमित कटाई छटाई भी की जाती है ताकि ये सही आकार में रहें। इसी प्रकार इसे नेशनल हाइवेज के डिवाइडर पर धड़ल्ले से लगाया गया है, यहाँ भी सही ऊँचाई रखने के लिए इसकी नियमित कटाई की जाती है। इसके पत्ते पशु खाना पसंद नहीं करते इसलिए भी बाड़े के किनारे और हाइवेज डिवाइडर पर इसे लगाना सही माना जाता है।

फूलों से लदा पीले कनेर का पेड़

 

           कनेर, तगर और अड़हुल तीन ऐसे पौधे हैं जो लगभग सभी मंदिरों के आसपास मिल जायेंगे क्योंकि पूजा में अर्पित किये जाने वाले इन फूलों के झाड़ीदार पौधे एकबार लगा देने पर वर्षों तक बहुत कम देखभाल के साथ फूल देते रहते हैं। कनेर के फूल दो प्रकार के होते हैं - पीला कनेर (Cascabela thevetia) और लाल कनेर (Nerium oleander). ये दोनों ही फूल पूजा में उपयोग किये जाते हैं। यद्यपि दोनों ही प्रकार के कनेर के फूलों में काफी अंतर होता है तथापि इनके पत्तों में अंतर बहुत कम होता है।   

पीले कनेर का फूल


पीला कनेर (Cascabela thevetia)


          यह एक शंकु के आकार का फूल होता है जो सामान्यतः गहरे पीले रंग में पाया जाता है। कभी - कभी ये सफ़ेद या लालिमा लिए हुए सफ़ेद रंग के भी पाए जाते हैं। इस पौधे का लगभग सभी भाग जहरीला होता है किन्तु इसका फल सबसे ज्यादा जहरीला होता है। विचित्र आकार वाले इसके फलों के खाने के कारण कई मौतों की ख़बरें आईं हैं। इसके फूलों में एक हलकी से सुगंध होती है। अपने महादेव भगवान् कई प्रकार के जहरीले वस्तुओं को पाकर प्रसन्न होते हैं। उन वस्तुओं में कनेर का फूल भी एक है। 

कनेर के पके बीज
(फोटो: रवि कुमार)

        यद्यपि पाश्चात्य विशेज्ञ इसे मैक्सिको का मूल पौधा मानते हैं किन्तु भारत में यह बहुत ही प्राचीन काल से उपस्थित है। इसका प्रमाण है वेद व्यास द्वारा रचित "श्रीमद्भागवत पुराण"। इसके दसवें स्कन्द में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन है। उनकी तरह -तरह की बाल-लीलाएँ बहुत ही मनमोहक हैं। एक बाल-लीला कहती है कि कृष्ण ग्वाल बालों के साथ खेलते हुए जंगल से पीले कनेर के पुष्प तोड़ लाते हैं और अपने दोनों कानों पर रख कर खेलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि कनेर का फूल भारत में प्राचीन काल से ही रहा है। 

          श्रीकृष्ण, श्रीराम और श्रीहरि, इन्हें पीला रंग पसंद है। ये पीला वस्त्र धारण करते हैं जिसके कारण पीताम्बर कहलाते हैं। इस कारण और ऊपर वर्णित बाल-लीला के कारण पीला कनेर श्रीकृष्ण को पूजा में अर्पित किया जाता है। तो इस प्रकार पीला कनेर शिव और हरि दोनों को पूजा में में चढ़ाया जाता है। 


लाल कनेर (Nerium Oleander)

लाल कनेर - Nerium Oleander


        लाल कनेर फूल का आकार (Shape) पीले कनेर से बिलकुल अलग होता है। रंग का फर्क तो होता ही है। पर इनकी पत्तियाँ काफी मिलती जुलती होती हैं। पत्तियों में अंतर यह होता है कि लाल कनेर की पत्तियाँ ज्यादा चौड़ी और गहरे हरे रंग की होती हैं। लाल कनेर के फूल छोटे होते हैं। रंग लाल, गुलाबी या सफ़ेद भी होता है और ये गुच्छों में फूलते हैं। दोनों के फल भी बिलकुल ही अलग होते हैं। जहाँ पीले कनेर का फल अंडाकार होता है, लाल कनेर का फल लम्बी पतली फलियों जैसा होता है। ये कहा जा सकता है कि पत्तियों की थोड़ी समानता को अलग रखें तो दोनों ही बिलकुल भिन्न प्रजाति के पौधे हैं।   

सफ़ेद प्रजाति का लाल कनेर


     लाल / गुलाबी कनेर के फूल भगवती दुर्गा, काली, पार्वती और उनके रूपों को अर्पित किया जाता है। तांत्रिक पूजा पद्धति में लाल कनेर के फूलों का बहुत महत्व है। फूल ही नहीं, लाल कनेर का पेड़ भी तंत्र साधना में बहुत महत्वपूर्ण है। कुछ ऐसे मन्त्र होते हैं जिनकी जप-साधना तांत्रिक को इसी पेड़ के नीचे पूर्ण करना होता है। इसकी सफ़ेद प्रजाति सूर्यदेव को अर्पित की जाती है।     

         

स्वर्ण कनेर (गोल्डन ट्रम्पेट)

स्वर्ण कनेर /अलामेन्डा


यह स्वर्ण कनेर का फूल पीले कनेर फूल से मिलता जुलता है। फर्क यह होता है कि पंखुड़ियाँ और डंठल ज्यादा लम्बी होती हैं। इसका बिलकुल ही अलग पौधा होता है। कुछ प्रजाति का रंग बैंगनी भी होता है। पहले तो मैं इसे पूजा का फूल नहीं मानता था किन्तु भुबनेश्वर में मंदिरों में जाने के दौरान मैंने इस फूल को देवी-देवताओं पर अर्पित होते देखा। पुजारी से पूछा कि ये कौन सा फूल है और क्या इसे ईश्वर पर चढ़ाना चाहिए ? पुजारी ने कहा कि यह "स्वर्ण कनेर" है और देवताओं पर चढ़ाया जा सकता है। फिर एक नर्सरी में जाकर माली से पूछा तो उसने बताया कि यह अलामेन्डा का फूल है। पांच पंखुड़ियाँ होने के कारण इसे पूजा में उपयोग किया जाता है। परन्तु ऐसे तो कई फूल हैं जिन्हें पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं किन्तु वे पूजा के फूल नहीं होते। ऑनलाइन पता करने पर सूचना मिली कि यह फूल दक्षिण अमेरिका का मूल पौधा है जो अब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में समाहित हो चुकी है। इसका वानस्पतिक नाम "अल्लामेन्डा कैथेरटिका" है। सामान्यतः इसे अलामेंडा, गोल्डन ट्रम्पेट या पीला अलामेंडा के नाम से जाना जाता है। इससे मिलता जुलता एक और पौधा है जिसे "टेकोमा स्टांस" या "चेस्टनटलीफ ट्रमपेतबुश (टेकुम्बा)" के नाम से जाना जाता है। यह भी गुच्छों में ही फूलता है। किन्तु इन फूलों का पुराणों या हिन्दू धर्मग्रंथों में कोई उल्लेख नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि ये फूल उस समय भारत में नहीं थे। चूँकि ये फूल पीले कनेर से बहुत मिलते जुलते हैं और मंदिरों में चढ़ाये जाने लगे हैं अतः हमें भी इन्हें पूजा-पुष्प के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए।     

          तो इन फूलों से परिचित होकर इन्हें अपने पूजा-अर्चन में उपयोग करें। 

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