'Puja' Flowers and other things used in 'puja' (Hindu Worship).: शमी -पत्र (हिन्दी ब्लॉग)

शमी -पत्र (हिन्दी ब्लॉग)

शमी का वृक्ष हिन्दुओं के लिए एक पवित्र पेड़
गेट के पास शमी -वृक्ष

हिंदू शमी के वृक्ष की पूजा उसी  पवित्र भावना से करते हैं जिस तरह तुलसी और बेल  के पौधे/पेड़  का। शमी -पत्र अर्थात शमी के पत्ते पूजन के समय श्री गणेश, शिव और हनुमान को अर्पित किये जाते हैं। अधिकांश भक्त शमी -वृक्ष को आवासीय परिसर के मुख्य गेट के पास लगाते हैं जिससे जब भी घर से बाहर निकलें तो इस पेड़ को देखकर सगुन बनाते चलें और सारे काम सही बनें। जिनके पास जगह की कमी होती है वे इसके पौधे गमले में लगा कर बालकनी अथवा सामने वरामदे पर रखते हैं।
       शमी का पेड़ बबूल के पेड़ से मिलता जुलता है। वैसे ही लम्बे, नुकीले कांटे और कटी-कटी पत्तियाँ। राजस्थान और आस-पास के क्षेत्र में बहुतायत से पाए जाने वाले एक वृक्ष खेजड़ी (Prosopis Cineraria /Spicigera), (जो पशु चारे के रूप में  काम आता है), को भी शमी बोला जाता है परन्तु ऐसा लगता है कि खेजड़ी वृक्ष शमी का एक नजदीकी रिश्तेदार है।
शमी -पत्र, शमी के पत्ते
      शमी -पत्र को प्रथम पूज्य भगवन गणेश को अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त को दीर्घ आयु, मान-सम्मान और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। भगवान् गणेश (जिन्हें विनायक भी कहा जाता है) के सबसे बड़े पर्व "गणेश -चतुर्थी" अथवा "गणेशोत्सव" पर उन्हें शमी-पत्र अर्पित करना विशेष फलदायी होता है। अर्पित करने से पूर्व इन पत्तों पर हल्दी -चूर्ण छींटा जाता है। महाराष्ट्र का गणेशोत्सव तो विश्वप्रसिद्ध है। वहाँ भगवान गणेश जी की पूजा जन-जन में लोकप्रिय है। दशहरा पूजा के समय महाराष्ट्र में मित्रों -रिश्तेदारों को शमी के छोटे पौधे उपहारस्वरूप देने की भी प्रथा है, यह सौभाग्य प्रदान करता है।
     ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शमी का वृक्ष शनि ग्रह के दुष्प्रभाव को दूर करता है। इसके लिए शमी वृक्ष के नीचे काला तिल और सरसों -तेल के दीपक को रखा जाता है। जिन पर शनि की साढ़े-साती अथवा ढैया होती है उन्हें प्रतिदिन या कम से कम शनिवार को शमी-वृक्ष के नीचे पूजन से बहुत लाभ होता है। 
{पूजा सामग्री ऑनलाइन भी उपलब्ध है}
            
      शनि-ग्रह के दुष्प्रभाव भगवान् शिव और हनुमान जी की पूजा से भी दूर  होते हैं। भगवान् शिव शनि के गुरु हैं, अतः शिव के प्रसन्न होने से भक्त पर शनि का दुष्प्रभाव नहीं होता। शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने में श्री हनुमान जी की पूजा भी बहुत फलदायी है। शनि देव ने स्वयं श्री हनुमान को वचन दिया था कि जो भी व्यक्ति श्री हनुमान को प्रसन्न करेगा उसपर उनकी कुदृष्टि का प्रभाव नहीं होगा। इसीलिए शनिवार को श्रीहनुमान जी की पूजा बहुत लोकप्रिय है। इस उद्देश्य से शिव और हनुमान, दोनों की ही पूजा में शमी के पत्तों को अर्पित किया जाता है। 
          भगवान को शमी -पत्र अर्पित करते समय निम्नलिखित श्लोक बोला जाता है:-

अमंगलानाम् शमनीम्  शमनीम् दुष्कृतानाम्  च।

दुःस्वप्न-नाशिनीं  धन्यां प्रपद्येSहं शमीं शुभाम्।।

      शमी की लकड़ी का उपयोग हवन में भी समिधा की तरह किया जाता है। हवन में डाले जाने वाली लकड़ियों को समिधा कहते हैं। नौ ग्रहों की शांति और उनके दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए नौ प्रकार की समिधा का उपयोग होता है। इन नौ ग्रहों में एक शनि ग्रह भी हैं जिनके शांति और दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए शमी की सूखी लकड़ी को हवन कुण्ड की पवित्र अग्नि में डाला जाता है अर्थात शमी की लकड़ी से हवन किया जाता है। हवन हेतु नौ प्रकार की समिधा पूजा सामग्री की दूकान में आसानी से उपलब्ध होती है।

शमी के फूल

      शमी का पेड़ लम्बे नुकीले काँटों से भरा होता है जैसे बबूल के पेड़ में होता है। अतः जब भी इसके पत्तों या लकड़ियों को तोड़ने जाएँ, बहुत सावधानी से तोड़ें अन्यथा कांटे चुभने की आशंका होती है। शमी का पेड़ एक श्रब (Shrub) होता है अर्थात यह न तो इतना बड़ा होता है जिससे इमरती लकड़ी निकल सकती है (आम, कटहल, आदि) और न इतना छोटा जिसका तना नर्म हो (तुलसी, गेंदा, आदि) | वर्षा ऋतु से पहले इनमें फूल आने लगता है। एक ही फूल में दो रंग होते हैं। ऊपर की तरफ आधा फूल हल्का पीला होता है जबकि बाकी आधा फूल सफ़ेद या गुलाबी होता है। तो एक ही पेड़ पर दो तरह के फूल देखने को मिलते हैं, पीला-गुलाबी और पीला-सफ़ेद। 
      तो शमी -पत्र को भगवान गणेश, शिव और हनुमानजी के पूजन में अर्पित कर लाभ उठायें। शमी वृक्ष की पवित्रता के बारे में जानने के लिए और इसके पीछे की कहानी जानने के लिए मेरे ब्लॉग अध्यात्म के पोस्ट - "पवित्र शमी और मंदार को वरदान की कथा" - पढ़ें। 

                         पूजा के सामान Amazon के  इस लिंक पर उपलब्ध हैं। शमी का पौधा स्थानीय बाज़ार से ख़रीदा जा सकता है अन्यथा Amazon भी इस लिंक पर बेचता है "शमी के जीवित पौधे पॉट के साथ". वे लोग नवग्रह समिधा लकड़ीहवन सामग्री भी बेचते हैं और यहाँ तक कि विभिन्न प्रकार के हवन कुण्ड भी। मैं यह देख कर चकित हुआ की ये लोग "Cow-Dung cakes" भी बेचते हैं जिसे हमलोग गोबर के कंडे/उपले/थेपड़ी/गोयठे के नाम से क्षेत्रीय भाषाओँ में जानते हैं।  "गोबर के उपले" हिन्दुओं के पूजन और हवन में पवित्र माने जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में इन्हे खाना पकाने में ईंधन की तरह उपयोग किया जाता है। बड़े शहरों में इन्हें पाना कठिन है।             
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