'Puja' Flowers and other things used in 'puja' (Hindu Worship).: स्वर्ण चम्पा, Swarn Champa (हिंदी ब्लॉग)

स्वर्ण चम्पा, Swarn Champa (हिंदी ब्लॉग)

     स्वर्ण चम्पा एक शानदार फूल है | इसकी तेज सुगंध पेड़ से 60 -70 फीट दूर तक अनुभव की जा सकती है | इसकी स्वर्गिक सुगन्ध एक बार अनुभव हो तो आप अपने आसपास चौक कर देखने लगते हैं कि यह किधर से आ रही है | इसी मनमोहक सुगंध के कारण इसे अगरबत्ती और इत्र बनाने में उपयोग किया जाता है | यह सुगंध इसके फूल को सुखा देने के बाद भी बनी रहती है|  

पत्तों के बीच स्वर्ण चम्पा का फूल 

      इसका पेड़ बड़ा होता है | आकर्षित करने वाला सुगंध होने के कारण लोग निचली डालियों से फूल तोड़ने से स्वयं को नहीं रोक पाते | परन्तु इसकी डालियाँ बहुत ही ठनकी होती हैं, प्रायः टूट जाती हैं | इसीलिए निचली डालियाँ प्रायः समाप्त हो जाती हैं | यहाँ इसका गुण ही इसका दुश्मन बन जाता है | ऊँची डालियों में लगे फूल ही अपनी सुगंध बिखेरते रहते हैं |  

     यह फूल पीला होता है जैसे कि सोना | सोना को संस्कृत में स्वर्ण कहते हैं | चम्पा मैगनोलिया वर्ग के कई प्रकार के फूलों को कहते हैं जिन्हें चम्पा के आगे अलग-अलग उपसर्ग लगा कर पुकारते हैं | इसीलिए इस फूल को स्वर्ण-चम्पा नाम दिया गया है | कुछ अन्य प्रकार के फूलों को कठ -चम्पा, कटेली चम्पा आदि नाम से भी पुकारा जाता है |

   स्वर्ण चम्पा को हिमालयन चम्पा के नाम से भी जाना जाता है | यह मूल रूप में दक्षिण पूर्वी एशिया का पेड़ है जो नमी वाली मिट्टी और धूप को पसन्द करता है | देसी पेड़ होने के कारण इसका उल्लेख कुछ हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है | मंदिर परिसर में भी यह पेड़ लगाया जाता है | स्वर्ण चम्पा और बकुल के पेड़ों को मंदिर मुख्य द्वार के दोनों ओर लगाने का प्रचलन है | भुबनेश्वर में मैंने कई आवासीय परिसर के मुख्य द्वार के पास स्वर्ण चम्पा वृक्ष को लगा हुआ देखा है |  

स्वर्ण चम्पा का वृक्ष

    स्वर्ण चम्पा एक पूजा का भी फूल है जिसे श्रीगणेश, शिव और देवी लक्ष्मी को अर्पित किया जा सकता है | भगवान विष्णु को भी यह अर्पित किया जा सकता है | कुछ लोग कहते हैं कि चम्पा और केवड़े के फूल शिव को अर्पित नहीं किये जाते जिसके लिए कुछ लोकगाथाओं का उदहारण दिया जाता है | केवड़े के फूल के बारे में यह सही हो सकता है परन्तु चम्पा के लिए यह सत्य नहीं है | आदिशंकराचार्य द्वारा रचित "शिवमानस पूजा" में लिखा है, 

"जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा

दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम गृह्यताम |"

अर्थात - हे दयालु पशुपति महादेव ! हृदय में कल्पना कर जूही, चम्पा, बेलपत्र, फूल और धूप -दीप आपको समर्पित करता हूँ कृपया ग्रहण कीजिये |

  इससे स्पष्ट है कि चम्पा के फूल शिव को अर्पित किये जाते हैं | एक अन्य लोकगाथा जो महाभारत के समकालीन है के अनुसार ओड़िसा के बरुण पर्वत के समीप कुंती ने महादेव को एक लाख स्वर्ण चम्पा फूल अर्पित किये थे इस अभिलाषा से कि महाभारत युद्ध में उनके पुत्रों की विजय हो | अर्थात शिव को यह पुष्प प्रिय है | 

      यह फूल माता लक्ष्मी को भी अर्पित किया जाता है | वस्तुतः स्वर्ण चम्पा देवी लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करता है | पीले पुष्प गणेश और विष्णु को पसन्द हैं अतः यह फूल इनदोनो देवताओं को भी चढ़ाया जाता है | 

   फूलों का मौसम समाप्त होने के बाद इनमे फल लगते हैं जो न्यूनाधिक रूप में अंगूर के गुच्छे जैसे होते हैं |

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