भांग एक ऐसा पौधा है जो भारत में सदियों से उगाया जाता है | उत्तर भारतीय संस्कृति का यह एक अभिन्न हिस्सा है | अंग्रेजी में इसे कैनाबिस (Cannabis) पौधा बोला जाता है | वनस्पति शाश्त्र में पौधे के वर्गीकरण के आधार पर इसे हर्ब (Herbs) श्रेणी में रखा जाता है | प्रायः यह झाड़ियों के बीच स्वतः उग आता है | इस पौधे को ज्यादा देख-भाल या पानी की जरुरत नहीं होती | भांग वस्तुतः इस पौधे की पत्तियों और फूलों का मिश्रण होता है | भांग को मादक पदार्थ की श्रेणी में रखा जाता है | हरी पत्तियों और फूलों के पेस्ट को खाने से मस्तिष्क को इस प्रकार प्रभावित करता है कि व्यक्ति का सौम्य व्यव्हार पर नियंत्रण घट जाता है - वह एक ही बात को बार-बार दोहराता है | यह व्यक्ति की ख़ुशी को बढ़ाता है जिससे वह छोटी -छोटी बात पर भी हँसता है | इसीलिए इसे संस्कृत और हिंदी में "उल्लासक" भी कहा जाता है अर्थात जो उल्लास या ख़ुशी को बढ़ाये | यही कारण है कि होली के त्यौहार पर इसका खूब उपयोग होता है क्योंकि होली उल्लास का भी पर्व है | तब सिल-बट्टे पर इसके पेस्ट का लड्डू जैसा बॉल बना कर या खोवा के साथ मिलाकर पेडे बनाकर सीधे ही खाया जाता है | होली में इसे ठंडई में मिला कर या पकोड़े बनाकर भी उपयोग में लाया जाता है | भांग की मस्ती का वर्णन तो बॉलीवुड की फिल्मों में भी हुआ है | फिल्म "डॉन" के उस गाने की लाइन भला कौन भूल सकता है - "भंग का रंग जमा हो चकाचक, और लो पान चबाय"|
राँची के पहाड़ी मंदिर के पास भांग और धतूरे का पौधा | धतूरे की पत्तियां चौड़ी होती हैं जबकि भांग की पतली |
यह तो हुआ भांग का पारंपरिक उपयोग | इसका नित्य उपयोग भी कुछ लोग करते हैं - जैसे साधु और सूफी, जो इसका उपयोग ध्यान लगाने में करते हैं | इसके उपयोग से ध्यान (Meditation) को ऊँचाइयों पर ले जाने में सहायता मिलती है जैसे लगभग समाधि की स्थिति में | इसीलिए शिवजी की पूजा में भांग चढ़ाने की परम्परा है | हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव कैलाश पर बैठे -बैठे समाधि की स्थिति में चले जाते हैं और तब इस स्थिति से उनको कोई जगाता नहीं, यहाँ तक कि देवताओं के राजा भी नहीं क्योंकि शिव के कोप का भाजन कोई नहीं बनना चाहता | भगवान शिव की पूजा में भांग को या तो हरी पत्तियों के पीस कर बनाये गए गोल लड्डू को अर्पित किया जाता है या भांग की सूखी पत्तियों के मोटे चूर्ण को | बहुधा सूखे भांग की पत्तियां ही चढ़ाई जातीं हैं क्योंकि यह आसानी से ज्यादा दिनों तक भंडारित किया जा सकता है और यह पूजा सामग्री की या किराना दुकानों में भी सुलभ है | एक ध्यान रखने वाली बात यह है कि जब भी शिवजी को भांग अर्पित किया जाय तो इसके बाद उन्हें पुनः जल अवश्य अर्पित किया जाय | भांग और जल का यह क्रम याद रखना आवश्यक है |
पार्क में एक छोटा भांग का पौधा |
शिव-पूजा में तो यह उपयोग में आता ही है, परन्तु इसके कुछ चिकित्सकीय गुण भी हैं यद्यपि आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं इसकी पुष्टि नहीं करता | पारंपरिक मान्यता यह है कि यदि भांग को सीमित मात्रा में लिया जाय तो यह पाचन क्रिया को बढ़ा कर भूख जाग्रत करता है, लूज-मोशन और लू लगने पर इसे रोकने में मदद करता है | किन्तु मेरी सलाह होगी कि इस पर सीधे विश्वास न किया जाए बल्कि ऐसी स्थिति आने पर चिकित्सक की सलाह लें, क्योंकि अंततः यह एक मादक पदार्थ ही है | विशेष अवसरों पर एवं सीमित मात्र में ही इसका उपयोग उचित है |
कहा जाता है कि शिव को प्रिय वस्तुओं में भांग भी शामिल है किन्तु जैसा कि अपने पूर्व के ब्लॉगों में मैंने लिखा है कि भांग, धतूरा जैसे मादक पदार्थों को शिव जी पर अर्पित करने का एक प्रयोजन है, वह यह कि भगवान शिव अपने भक्तों को इन्हें त्याग करते हुए उन्हें समर्पित करने कहते हैं | यह तो सभी जानते हैं कि शिवलिंग पर चढ़ी हुयी वस्तु को खाया नहीं जाता अतः चढ़े हुए भांग को प्रसाद समझ कर खाना नहीं चाहिए |
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