'Puja' Flowers and other things used in 'puja' (Hindu Worship).: धतूरा के फूल - Datura - (हिंदी ब्लॉग)

धतूरा के फूल - Datura - (हिंदी ब्लॉग)

ऐसा फूल जो सिर्फ महादेव को ही अर्पित होता है 
सावन में खिले हुए धतूरा के फूल
       धतूरा भोंपू या लाउडस्पीकर के आकार का सफ़ेद या सफ़ेद नीला मिला हुआ रंग का फूल होता है। अपने आकार के कारण यह बरबस ही आकर्षित करता है। इसका पौधा समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पाया जाता है। बरसात के मौसम में इसका पौधा बढ़ता और फूलता है। बरसात में ही भारतीय कैलेंडर का सावन का महीना आता है जो हिन्दुओं के लिए एक पावन महीना है। सावन के महीने में हिन्दू भक्त भगवन शिव की विशेष आराधना करते हैं। सावन में धतूरे का फूल और फल महादेव को अर्पित कर भक्त को ख़ुशी होती है क्योंकि शिव को ये बहुत प्रिय हैं। इसका फूल और फल दोनों ही विषैला होता है किन्तु शिव के लिए ये कुछ नहीं। जैसा कि हमलोग जानते हैं कि देव और असुर द्वारा समुद्र मंथन में हलाहल विष भी निकला था जिसे पीने में कोई भी देव या असुर समर्थ नहीं थे। तब विश्व के कल्याण के लिए महादेव ने हलाहल विष को अपने गले में धारण किया जिससे उनका गला नीला हो गया और उनका एक नाम नीलकंठ भी हुआ। ऐसे भयानक विष को धारण करने वाले शिव को धतूरे के विष का क्या असर होगा? इसी कारण धतूरा मात्र शिव को ही अर्पित होता है अन्य देव को नहीं। धतूरे का फल बाहर से कटीला होता है और अंदर बीज की भरमार। इसका बीज थोड़ी मात्रा में लेने पर मतिभ्रम या पागलपन हो सकता है जबकि अधिक लेने पर मृत्यु भी हो सकती है।   

महादेव को विषैले पदार्थ भी क्यों अर्पित किये जाते हैं। 

धतूरा के दोहरे फूल पूजा -डलिया में
       अन्य देवताओं को अर्पित फल - मिठाई पूजा के उपरांत उठा कर प्रसाद के रूप ग्रहण किया जाता है किन्तु शिवलिंग पर अर्पित फल मिठाई को नहीं। शिवलिंग पर अर्पित विषैले और नशीले पदार्थ यथा भांग, धतूरा, आक, आदि को अर्पित करने का एक सांकेतिक अर्थ भी है कि जगत के वृहत कल्याण के लिए ऐसे पदार्थ को हमलोग ग्रहण नहीं करें। 
          शहरों में तो सावन के महीने में धतूरे के फल और फूलों की बहुत मांग होती है। गरीब बच्चे आस पास के क्षेत्र से इन्हें लाकर मंदिरों के पास अच्छे दामों पर बेचते हैं और शिवकृपा से उनकी कमाई हो जाती है। 

धतूरे को कैसे पहचानें?

पूर्णतः खिलने से पहले धतूरे की कलियाँ
पूरे विश्व में धतूरे की कई प्रजातियाँ पायी जाती हैं। कुछ तो इनसे मिलती जुलती प्रजातियाँ भी होती हैं किन्तु भारत में जो धतूरा पूजा के लिए उपयोग में लाया जाता है उसका पौधा लगभग 2 मीo तक की ऊँचाई वाला हर्ब (Herb) की श्रेणी का होता है। इसका फूल सफ़ेद या नीली आभा लिए सफ़ेद होता है। अधिकांश प्रजातियों में इकहरे फूल होते हैं अर्थात एक भोंपू के समान किन्तु कुछ प्रजातियों में दोहरे फूल भी होते हैं जो देखने में ऐसे लगते हैं मानो एक भोंपू दूसरे के अंदर डाला गया हो। धतूरा पौधे में सीधा ही फूलता है लटकता नहीं। मिलते जुलते जो फूल लटकते हुए खिलते हैं वे पूजा के धतूरा पुष्प नहीं होते। ऐसे फूल धतूरा से बहुत बड़े होते हैं और लटकने के कारण घण्टी-पुष्प (Bell flower) कहलाते हैं, इनका उपयोग बागों में शोभा के लिए होता है। धतूरा के पौधे को इसके कटीले फल से भी पहचाना जा सकता है। 

यह एक दमदार पौधा है

धतूरे का दोहरा फूल,
मानो एक दूसरे में डाला हुआ हो।
             धतूरा गर्म और नम वातावरण में तेजी से फलता फूलता है तथा फूल भी बड़े आकार के होते हैं। किन्तु यह सूखे और कम पानी की उपलब्धता वाले स्थान में भी उग सकता है और स्वयं को वातावरण के अनुसार ढाल लेता है। ऐसे में इसके पुष्प पतले और छोटे हो जाते हैं जिनसे कभी वैज्ञानिक संदेह में आते हैं कि कहीं यह धतूरे की दूसरी प्रजाति तो नहीं? किन्तु बाद में पता चलता है कि यह तो इसने स्वयं को सूखे वातावरण के अनुसार ढाला है।
       दमदार होने के बावज़ूद यह बहुत ठण्डे वातावरण को नहीं झेल सकता और ना ही लगातार पानी जमे रहने वाले स्थान को।
   
धतूरा के उपयोग

धतूरा का मुख्य उपयोग भारत में पूजा के उद्देश्य से ही होता है। शिवपूजा में इसका उपयोग अपेक्षित होता है। आयुर्वेद में इसके बीजों का बहुत ही कम मात्रा में उपयोग किया जाता है। कुछ जनजातियों में इसके बीजों को प्रेतात्माओं के आह्वान के लिए भी किया जाता है। 

दोहरे और तिहरे धतूरा के फूल

धतूरे का तिहरा फूल
जो बड़ा, फूला हुआ और आकर्षक लगता है
             जैसा की ऊपर वर्णन किया हूँ कि यह फूल मुख्यतः एकहरा होता है जो देखने में भोंपू जैसा होता है किन्तु ये दोहरे और तिहरे भी हो सकते हैं। दिनांक 16/09/2015 को तीज के अवसर पर शिवपूजा के लिए धतूरे का फूल माली से मंगाया था। पता नहीं उसने कहाँ से लाये पर पहली बार मैंने दोहरा और तिहरा फूल उनमें देखा। दोहरा फूल एक के अंदर दूसरा भोंपू डाला हुआ जैसा लग रहा था। अंदरूनी भोंपू बाहरी से बाहर निकला हुआ था, चित्र साथ में। 
         इनमें एक तिहरा फूल भी था किन्तु इसके सभी लेयर एक के अंदर एक बराबर स्तर पर थे। इस कारण यह बड़ा और फूला लग रहा था। इस तिहरे फूल का चित्र भी यहाँ दे रहा हूँ। 

महादेव को क्या क्या पसंद हैं इस लिंक में पढ़िये → What Lord Shiva likes? 

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